कहां गया पूर्ण स्वराज


सरफिरे मनचलों ने दी ऐसी गार 
जटा-जन्मी गंगा में उठा उफ़ान 
चिंतित विचलित हुए मेरे राम
कहां गया वो पूर्ण स्वराज
देखो! नंगा नाच नाचे है चांडाल 
हाय! हलक ही सूख गए मेरे प्राण 

अब सुनिए 
सुनिए भी लीजिए

ये रहा आपका लोकतंत्र
बिखरा पड़ा है लावारिस स्वतंत्र
ये रहा आपका चुनाव
बिक रहा रद्दी के भाव
वो देखो आपकी सोच के वोट
उड़ा ले गए हरे-हरे नोट 

देखिए 
अरे देख लीजिए

ये रही आपकी औकात
भोकाल था जिसका वो है चुपचाप 
दम घुटा मूर्छित पड़ी अब तो
स्वघोषित नेताओं की महफिलों में वो
कुंठित होकर गई थी तब जो
चीखती चिल्लाती क्या याद है सबको

नाच-नाच गई थी नालायक 
कुलटा कुलक्षिणी भूल गई शराफ़त 
हाय! मनमर्जी नहीं अब मजबूरी है
चुप रहना ही उसकी संस्कार ओ संस्कृति है

अब रहने दीजिए
कुछ मत बोलिए

देखिए आगे क्या-क्या होता है
हर मोड़ पर हो रहा धूम-धड़का है
मन में हो रही उथल-पुथल है
व्याकुल सीता सा मन जंगल-जंगल है

घूंट-घूंट भर है आपको पीते रहना
रक्त अन्याय का चखते रहना
बह नहीं सकता वो मुर्दा रगों में
बहते रक्त की अब नदियां देखना

भ्रष्ट के साथ राष्ट्र 
अधर्म के पैरों में धर्म
आदत बन गई है ये सब बातें 
विपरीत हो गए तो पड़ेगी लातें 

अन्याय का नौकर बनता न्याय
धनवान की चौखट मरता निर्धन
उनके अमीर होने का शौक है पालना 
गरीब के मुंह में भरकर जला कोयला 
तो उनका हुक्का-पानी चलने देना
रक्तरंजित उनकी लार टपकते देखना

देखो पराई चिताओं पर पकते है पकवान
देखो जलती उम्मीदों पर जलता है स्वराज

समाप्त हुई पूर्ण स्वराज की वो बेला
लोकतंत्र के मूर्छित होने की है ये सूचना
सञ्जीवनी बूटी की करे है प्रतीक्षा
हे राम अब दिखलाओ कोई दिशा

हे राम अब दिखलाओ कोई दिशा
हे राम अब दिखलाओ कोई दिशा।


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