एकजुटता के मूलभूत सिद्धांत


 

भारत, अथार्त् इंडिया, राज्यों का संघ होगा।

- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 1(1)

ज्यादा नहीं, बस कुछ साधारण और बुनियादी बातें है जो सबको साथ रखने के लिए, एकजुट बने रहने के लिए, खास तौर से जरूरी है। बाकी तो ऐसा है कि अपना-पराया करने वाले करते ही रहेंगे, तोड़ने वाले तोड़ने का भरसक प्रयत्न करते ही रहेंगे, और दिलों में नफ़रते और रगों में जहर घोलने वाले भी चुप नहीं रहेंगे। फिर भी सब कुछ जानते हुए भी एकजुटता बनाए रखने वालों की हिम्मत कम नहीं होनी चाहिए, उन्हें अपने आदर्शो के साथ, अपने संस्कारों के साथ, अपने मन व विचारों के साथ समझौता करने की कोई जरूरत नहीं है, ये थोड़ा बहुत जो लिखा है, बस उन्हीं के लिए है।

और लिखा भी एकदम हल्के फुल्के अंदाज में ही है जो कि आसानी से सभी की समझ में भी आ जाए। ठीक है! तो अब थोड़ा सा पढ़ लेते है, फिर दुनियादारी तो जैसी चल रही है वैसी चलती ही रहेगी।

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एकजुटता के मूलभूत सिद्धांत:

घर-परिवार को एकजुट बनाए रखने के ये कुछ सिद्धांत है। याद है ना कि पुराने ज़माने में संयुक्त परिवार अर्थात् joint family हुआ करती थी, खैर अब तो लोग अपने छोटे-छोटे परिवारों के साथ रहने लगे है और खुश भी है। मगर कुछ बातें है जो हमें अब भी याद रखनी चाहिए, फिर चाहे वो घर-परिवार कितना ही छोटा क्यूं ना हो।


1. हिसाब और किताब हमेशा बराबर होने चाहिए, एकदम जरूरी बात। कोई हेरफेर नहीं, कोई त्रुटि नहीं, कोई भ्रष्टता नहीं - गणित और वर्णन दोनों एकदम सटीक होने चाहिए। और साथ ही साथ खर्चों पर क्षमता के अनुरूप नियंत्रण भी होना चाहिए। मन में रखी इच्छाओं को नियंत्रण में रखते हुए भी तथा रोजमर्रा व खास मौकों के क्रियाकलापों में भी।

2. सारे मामलों में पारदर्शिता होनी चाहिए, किसी भी सदस्य को अंधकार में नहीं रखना चाहिए। खासतौर से डरा-धमकाकर या फिर बहला-फुसला कर या अन्य किसी भी कारण का वास्ता देकर। पारदर्शिता से ही एक दूसरे के प्रति विश्वास बनता है, एक दूसरे की सोच और भावनाओं को समझने की शक्ति विकसित होती है। तथा गलतियों में सुधार करने हेतु और तरक्की करने के लिए भी ऊर्जा बराबर मिलती ही रहती है। पारदर्शिता ख़त्म तो विश्वास खत्म और एक-दूसरे के प्रति विश्वास नहीं तो फिर काहे का संयुक्त परिवार।

3. जवाबदेही एकदम होनी चाहिए, कोई भी निर्णय, कोई भी खर्चा, कोई भी काम हो, फिर चाहे कुछ भी सही हुआ हो या गलत, या किसी से भी किसी भी प्रकार की भूलचूक हुई हो - हर सदस्य जवाबदेह होना चाहिए। चुप्पी साधने से, ठीक से बात नहीं बताने से, कुछ बातें छुपा कर रखने से घर-परिवार के सदस्यों में असंतुष्टि और क्रोध की भावना विकसित होती है और लंबे समय तक बनी रहती है तथा हर किसी को अपनी मनमानी करने के लिए भी उकसाती है। जो कि आगे चलकर संभवतः उस परिवार के टूटने का मुख्य कारण भी बन सकती है।

4. ज़िम्मेदारी का ठीकरा किसी एक के सर पर फोड़ना ठीक नहीं, हर किसी को अपने-अपने हिस्से की ज़िम्मेदारी पूरी लगन और श्रद्धा के साथ निभानी चाहिए। बहाने अनेक होते है, सबके पास होते है, ढूंढेंगे तो एक नहीं हजार मिलेंगे, बहानों की कोई कमी नहीं है इस दुनियां में। मगर जिम्मेदार व्यक्ति हमेशा अपनो के लिए हर बाधा, हर मुश्किल, हर बहाने को पार करके, अपने-अपने सामर्थ्य अनुसार जिम्मेदारियां निभाता है और निभाता आया है।

5. ईमानदारी, सबसे जरूरी बात, ये नहीं तो फिर कुछ भी नहीं। घर-परिवार चाहे कितना ही संपन्न क्यूं ना हो अगर ईमानदारी नहीं तो उस परिवार को बर्बाद होने से और टूट कर बिखरने से स्वयं ईश्वर भी नहीं बचा सकते।

6. पक्षपात नहीं होना चाहिए, घर के सब लोग सारी मूलभूत सुविधाओं के हकदार होने चाहिए। फिर चाहे वो कमा कर लाए या नहीं, फिर चाहे वो बीमार हो या स्वस्थ, फिर चाहे वो बच्चे हो या बड़े, या अन्य कोई भी परिस्थिति में हो - सबको अपने हिस्से की सुविधा मिलनी चाहिए। पक्षपात अगर होता है तो वो घर-परिवार बाहरी लोगों को भले ही एक जैसा दिखे मगर भीतर से वो टूटा हुआ ही रहेगा, उस घर-परिवार में लोग एक साथ कभी खुश नहीं रह सकते। और फिर धीरे-धीरे दीमक लगे ढांचे की भांति वो घर खोखला होता ही जायेगा।

7. एक दूसरे की इज़्ज़त - जी, ये एक दूसरे के प्रति प्रेमभाव से भी ज्यादा जरूरी बात है। हालांकि प्रेम का भी अपना एक स्थान है सबको साथ रखने के लिए, मगर प्रेम बड़ा ही शांत रहता है, वो लगभग-लगभग मन के भीतर किसी कौन में हमेशा सोया हुआ ही रहता है, जबकि एक दूसरे के प्रति आदर-सम्मान की भावना हमेशा ही साक्षात् रहती है, प्रत्यक्ष रहती है, सबको दिखाई देती है, सभी उसे महसूस कर सकते है।

8. ताकत होनी चाहिए और भरपूर मगर उस ताकत का उपयोग हमेशा ही बाहरी खतरों से निपटने के लिए ही करना चाहिए। फिर चाहे वो खतरा किसी भी प्रकार का हो, उन खतरों से अपने घर-परिवार को बचाए रखने के लिए, घर और घर के हर एक सदस्य की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए ही उस ताकत का इस्तेमाल करना चाहिए - ना कि घर के किसी सदस्य के खिलाफ। कुछ लोग ताकत का इस्तेमाल यूं भी करते है - जैसे कि आपसी मनमुटाव के चलते एक दूसरे की टांगें तोड़ कर उनके हाथों में बैसाखी थमा देते है, नहीं, ऐसा कभी नहीं करना चाहिए। अगर ताकत का गलत इस्तेमाल होता है तो फिर बाहरी ताकतें उस घर-परिवार की तरफ नजरें गाड़ने लगती है। अपनो के साथ ताकत का गलत उपयोग अपनो के बीच ही धोखेबाजी और हिंसा को जन्म देते है।

9. सहानुभूति - देखिए ऐसा है कि भले ही आप दूसरे की खुशियों को नहीं महसूस कर पाओ मगर एक दूसरे के दुख को, उनकी पीड़ा को हमेशा अपना जानो, उसके प्रति करुणा का भाव रखो, उसके साथ हमदर्दी जताओ। समय आने पर, किसी भी प्रकार की दुख की घड़ी में उनके साथ खड़े रहो और जितना हो सके उतनी उनकी मदद करो, हर संभव प्रयास करो कि उनके दुख थोड़े कम हो जाए।

10. घर-परिवार की मर्यादाओं का हमेशा पालन होना चाहिए, घर की बात हमेशा घर में ही रहे और बाहरी हस्तक्षेप से बच कर रहे। और साथ ही साथ ये भी ध्यान रहे कि बाहरी मामले, बाहरी उलझने भी उतनी ही रहे और वैसी ही रहे कि जिनसे घर की शांति भंग नहीं हो। चूंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तो बाहरी दुनियां से पृथक होकर तो जी भी नहीं सकता, तो बाहरी दुनियां से हमेशा वैसे संबंध बनाए रखे जिसमे घर की तरक्की हो, घर में खुशियों का प्रवेश हो, अपने यार-दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ संबंध गहरे हो जो कि परिवार को और ज्यादा मजबूती प्रदान करे, समाज में नाम, पद, खानदान और पूर्वजों की इज़्ज़त बनाए रखे।

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बातें पढ़ ली, अब ध्यान रखना और 'अगर-मगर' वाले मगरमच्छों से बचकर रहना। क्यूं कि फिर वो मगरमच्छ आपको कच्चा ही निगल जाएगा और डकार भी नहीं लेगा।

बाकी, आप सभी का शुभ हो, मंगल हो।

एवमस्तु

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