एक नागरिक की वेदना


 एक नागरिक की वेदना


written by Girish J Jain
Friday, 18th August, 2023



घर-परिवार के किसी भी सदस्य को बीमार होते हुए देखना या फिर उस बीमारी की वज़ह से उसे धीरे-धीरे मरते हुए देखना शायद थोड़ा कम दुखदायक है लेकिन एक देश को बीमारी की अवस्था में देखना, उसके संविधान को मरते हुए देखना, कानून और न्याय व्यवस्था का मजाक बनते हुए देखना, उस देश के आदर्शों को बीच बाजार नीलाम होते हुए देखना, उस देश के चरित्र को पथ भ्रष्ट होते हुए देखना, झूठ की तलवार द्वारा सत्य को घायल होते हुए देखना - यह सब अत्यधिक व असहनीय रूप से दुखदायक है।


क्यूं कि बीमार व्यक्ति का इलाज़ तो घर-परिवार के लोग सच्ची श्रद्धा से और जितनी  भी उनकी क्षमता है, उसके अनुरूप हर संभव कोशिश करके करते ही है कि वो जो अपना है, अपना खून है, अपना तन है, वो किसी प्रकार स्वस्थ हो जाए, चलने फिरने लगे, सब कुछ ठीक हो जाए। मगर सारी कोशिशों के बावजूद भी एक ना एक दिन उस व्यक्ति को मृत्यु की शरण में जाना ही पड़ता है। खैर…!


मगर एक देश को मरते हुए देखना अत्यधिक कठिन है क्यूं कि उस देश के ही कुछ लोग कलंकित कुकर्मों से उपजी कूटनीति के विषैले जाल में अन्य लोगो को फांस कर एक सुनियोजित साज़िश को अंजाम देने की क्रिया द्वारा उस देश को मारते है -  उस देश के संविधान को, कानून और न्याय व्यवस्था को, उस देश के आदर्शों को, चरित्र को और फिर सच्चाई को पूर्ण रूप से तहस-नहस करके उस देश के इतिहास की हत्या की जाती है जिससे कि वर्तमान विकृत अवस्था में आ जाए और भविष्य अंधकार में लुप्त एक रूकी हुई घड़ी की भांति किसी भंगार में पड़ा रहे।


लोकतांत्रिक व्यवस्था में जीवित एक नागरिक के लिए इससे ज्यादा दुखदायक और कुछ भी नहीं है। और अगर ऐसा नहीं है तो उस नागरिक की बहुत पहले ही मृत्यु हो चुकी होगी और वो एक दास की भांति, क्रूर शासक और भक्षक सत्ता का एक गुलाम बनकर अपना जीवन किसी कीड़े-मकोड़े की तरह उस देश के किसी कौन में बैठा हुआ जी रहा होगा।


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लिखी हुई किसी भी बात से अगर आपके मन को ठेस पहुंचाई हो तो क्षमा चाहूंगा।


पढ़ने के लिए धन्यवाद

गिरीश जे जैन 





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