Branded Religion | ब्रांडेड धर्म

 


कुछ लोगो के लिए (शायद अधिकतर लोगो के लिए), धर्म सिर्फ एक ब्रांड है - और उनका 'धर्म' एक ब्रांडेड-धर्म है, इससे ज्यादा कुछ भी नही।


और इस ब्रांडेड-धर्म में 'धर्म' का महत्त्व, उसका अर्थ, उसके होने की वजह कभी न कभी किसी मोड़ पर पूर्णतया नष्ट हो जाती है, या यूं कहें कि उसकी हत्या कर दी जाती है। उन्ही लोगो के द्वारा जो ब्रांड के नाम पर 'धर्म' की दुकान का धंधा ठीक से चलता रहे, ऐसा सुनिश्चित करने का भरसक प्रयास करते ही रहते है।


एक बात अभी कह देता हूं, समझने की सारी शक्ति का इस्तेमाल करके जान लेना और फिर शंका मत रखना - 'धर्म' की हत्या करके ही उस धर्म के ब्रांड को जिंदा रखा जाता आया है, रखा जा रहा है और रहेगा। कब तक? जब तक लोग ब्रांडेड-धर्म से थक नही जाते, सिर्फ लेबल देख कर उनकी आत्मा उन्हे धिक्कार नही दे - तब तक। आत्मा की प्यास ब्रांड से संतुष्ट होने वाली नही है, उसे 'धर्म' की जरूरत है - और किसी ना किसी दिन वो मन, वो आत्मा, ब्रांडेड लेबल को छोड़ कर 'धर्म' की तलाश में भटकने लगेगी, अपनी संतुष्टि की लिए, स्वयं के होने का अर्थ ढूंढने के लिए, अपने इस भव के जन्म को सार्थक करने के लिए और न पाए इस जन्म में तो अन्य किसी भव में, अन्य किसी शरीर में, अन्य किसी जन्म में। मगर आत्म तो अपना सच्चा धर्म पाकर ही संतुष्ट होगी - एक दिन।


धर्म जब तक पानी की तरह सरल, निर्मल ना दिखने लगे तब तक।


पानी : प्यासे की प्यास बुझाता है, घर को शुद्ध व स्वच्छ रखने में भी काम आता है, घर में विराजमान देवी-देवताओं के अभिषेक करने में भी प्रयोग होता है, और शरीर से त्यागे मल-मूत्र को भी साफ करता है। अनगिनत व अनेक प्रकार के शुभ-अशुभ कार्यों में बिना किसी वाद-विवाद हर कोई इसका इस्तेमाल कर सकता है। आसमान से बरसता है तो पता नही पूछता, नदियों में बहता है तो रास्ता नहीं पूछता। प्यासे का नाम, धर्म, जाती, रंग, भाषा, वेशभूषा, कर्म, अकर्म, उद्देश्य नही पूछता - सिर्फ प्यासे की प्यास बुझाता है। हर प्रकार के जीवन के लिए जरूरी है और तरह-तरह से उपयोग में आने के बाद भी ना तो कभी पानी का महत्तव कम हुआ, ना उसकी जरूरत, ना उसका सरल व निर्मल होना रुका और ना ही पानी के प्रति किसी की भी भावनाओं में किसी भी प्रकार का दोष उत्पन्न हुआ।


पानी सौदा नहीं करता।


मगर दुकानों में जब लेबल लग जाए तो पानी एक बोतल में बंद होकर सौदे का एक सामान हो जाता है। सौदा पानी नहीं सिर्फ दुकान वाला करता है। उस दुकान के सामने प्यास से कोई मर भी रहा हो तो भी एक सौदा होता है - फायदे या नुकसान का हिसाब होता है।


धर्म पर भी जब लेबल लग जाए तो 'दुकानदारों' के सौदे का वो सिर्फ एक सामान बन जाता है। और हर दिन उस ब्रांडेड-धर्म के फायदे-नुकसान का हिसाब होता है।


पूछिए जरा अपने मन से, सवाल कीजिए ख़ुद से! और अगर आपके मन की किसी भी शंका या मन में विद्यमान किसी भी दोष का निवारण वो ब्रांडेड-धर्म से नाप-तोल कर लिमिटेड मात्रा में मिला वो ज्ञान ना कर पाए तो ब्रांडेड वाले धर्म को त्याग कर 'धर्म' की तरफ जिज्ञासु होना शुरू कर दीजिए।


कहने को बहुत कुछ है, फिलहाल इतना ही।


शुभकामनाएं।



लिखी हुई किसी भी बात से आपके मन को ठेस पहुंची हो तो क्षमा चाहूंगा।


आपका हितैषी

गिरीश जैन




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