' गिरफ्तार अन्न '





इस बार जब घरों में अनाज लेकर आएंगे
'बिल' पर्ची पर हिसाब तो जांच कर ही लायेंगे
हुई उसमे कुछ छोटी-मोटी कंकरी तो
शिकायत भले ही हम करे न करे
छान-बीन कर अलग तो कर ही देगी
हमारी मम्मी या घर की बहु बेटी या लुगाई।

ये सोचकर कि अन्न की शुद्धता रहे
दोषमुक्त अन्न की परंपरा कायम रहे।

मगर एक गहरा लाल रंग
कर्मठ - निर्दोष किसानों के रक्त का
यूं तो दिखाई नही देगा उन आंखों को
अपने निशान भी ना छोड़ पाएगा 
उन छानते बिनते हाथों पर
और वो अन्न ख़ामोश भी तो रहेगा
ना चीखेगा ना कुछ कहेगा।

मगर कोई है…
जो कहेगा हमसे और उनसे एक कहानी
उस थके-हारे गिरफ्तार अन्न की
एक लंबी यात्रा की कहानी
खेत खलिहानों से घर तक आने की कहानी।

सुनाएगा उसके दाताओं की चीखें
उनकी मजबूरियां और रिसता हुआ दर्द
दिखायेगा गहरा लाल रंग
और छोड़ेगा कुछ निशान
पंचतत्वों की काया के भीतर
ख़ामोश पड़े एक मन पर।

और जब चुभेगी उस मन को
चुभती है जैसे छोटी-मोटी कंकरी
तो कैसे अलग करेगी
उसे मन से कैसे छानेगी

इस बार जब घरों में हम अनाज लेकर आएंगे
'बनिए' को पैसा देकर भी तो गुलामी लेकर आएंगे।

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