एक रहस्य | About A Secret


क रहस्य | About A Secret

लेखक : गिरीश जैन





'रहस्य' ; शायद उस एक व्यक्ति की तरह है जो है तो आपके आसपास ही, आपके गांव, शहर, देश या विदेश में, मगर जिससे आप पहले कभी मिले नही, या अगर मिले भी तो उस तरह नही मिले जब वो मिलना, वो मुलाकत, एक खास मुलाकात के रूप में जीवन भर के लिए एक खूबसूरत याद की तरह आपके दिल-दिमाग में घर कर जाए।


और जब ऐसा हो जाए तब किसी और से अगर ये कहा जाए कि - देखो वो व्यक्ति आपके लिए कितना खास हो गया है। तो दूसरे लोगो को उसका रूप-रंग-चरित्र के अलावा और कुछ नजर भी ना आए। मगर आपके लिए तो उस इंसान की हर एक बात, उसकी आवाज, उसका नाम, उसकी हर एक पसंद-नापसंद, उसके अंदाज, सब ही कितना खास हो जाता है ना। होता है ना! जब मन में प्रेम का फूल खिलने लगे तब।


प्रेम, हमारे जीवन का पहला रहस्य है। किससे हो जाए? क्यूं हो जाता है? कब होता है? कोई भी तो नहीं जानता।


एक और रहस्य है, जिसके बारे में जानने के लिए हम जीवन भर तरह-तरह के प्रयत्न करते रहते है। सबसे गहरा और गुह्यतम - परमात्मा।


प्रेम का हल्का सा अनुभव तो अक्सर उम्र के सोलवे सावन के आते-आते हो ही जाता है। ये रहस्य हमे इसकी गिरफ़्त मे बिना किसी चेतवानी के घेर ही लेता है। मगर परमात्मा का अनुभव इतना आसान नही है।  कितने ही जन्मों की तपस्या लगती है। तो फिर प्रेम और परमात्मा के बीच इतना गहरा रिश्ता क्यूं है। क्यूं कहते है कि - इश्क खुदा है, Love is God. संत कबीरदास जी ने भी तो कहा है - 

"पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,

ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।"


(इस अद्भुत रिश्ते के बारे में लिखने वाले भी और लिखी हुई बातें भी अनेक है। श्लोक है, दोहे है, अलग-अलग धर्मों के अनेक शास्त्र है, और भी बातें अनेक है, नाम उनके अलग है, मगर इस लेख में फिलहाल इतना ही)


तो कैसे उजागर हो ये रिश्ता? क्या है ये रहस्य? आइए, साथ में थोड़ी सी खोज करते है, कोशिश करते है, जितना हो सके उतना समझने की :


उत्प्रेरक (Catalyst) :

कुछ बाते होती है, कुछ शब्द होते है, जो कि अनायस ही हमारे सामने आ जाते है, और वो तुरंत ही हमारे मन - विचार - बुद्धि को जैसे छू लेते है। जैसे की उनका कोई खास प्रयोजन हो हमारे मन-मस्तिष्क से। यूं तो सरल व साधारण से प्रतीत होते है, मगर वे एक उत्प्रेरक (Catalyst) की भांति दिल-दिमाग में पहले से विद्यमान भावनाओं को, विचारों को गतिमान करके, दिशानिर्देश देकर, जैसे कि किसी उलझन को सुलझाने लगते है। 


होते है ऐसे कुछ शब्द, होती है कुछ ऐसी बातें, यकीन रखिए।


कभी वे शास्त्रों के अध्ययन के दौरान हमे पढ़ने मिलते है, तो कभी किसी दार्शनिक व्यक्ति के गहन चिंतन से जन्मी किसी किताब में, तो कभी किसी धर्म गुरु के प्रवचन द्वारा भी सुनने को मिल सकते है। या कभी किसी अन्य माध्यम द्वारा। 


इनके अलावा भी जैसे कभी कोई व्यक्ति ऐसी कोई बात जीवन के अनुभव से यूं ही कह देता है, बिना किसी दावे के या प्रमाण के। अच्छा, ऐसा भी नहीं है कि उन शब्दो को सुनने-पढ़ने वाले हर व्यक्ति के दिल-दिमाग में वो बात बैठ जाए, या हर कोई उस बात को मन से स्वीकार कर ले, नही, ऐसा नहीं होता। हर व्यक्ति की अपनी एक समझ होती है, जीवन का अनुभव होता है और हर एक व्यक्ति की अपनी एक तैयारी होती है। 

ऐसी ही एक बात का ये एक अच्छा उदाहरण है:

"अगर आपके पास एक ऐसा इंसान है जो आपका सब कुछ सुनने के लिए तैयार है, वो भी बिना आपको जज किये, तो यकीन मानिए वो भगवान है।"

- via Twitter @AlgoBoffin / Vipin.


सुंदर, अति सुन्दर। ये वाक्य जब पढ़ा तो तुरंत ही मन में कुछ विचार उभरे, कुछ सवाल उठे, और स्वयं के मन-मस्तिष्क में विश्लेषण करने के बाद और इस लेख के विषय में उन्हें व्यक्त करने के लिए मन बड़ा ही उतावला हो उठा।


अच्छा, सोच कर देखिए, कभी हुआ है ऐसा? किसी भी व्यक्ति ने; चाहे परिवार से हो, दोस्त हो, रिश्तेदार हो या भले ही अंजान हो, है कोई ऐसा जो आपको जज नही करता हो, परखता ना हो? और जैसे भी आप हो वैसे ही स्वीकार करता हो? कोई नही होता ऐसा, यकीन मानिए। हम स्वयं भी तो ऐसे नही है तो किसी और से क्यूं ही उम्मीद करे! हम भी हर किसी को, हर एक बात पे, काम से, व्यवहार से, विचारों से परखते ही रहते है। उनके बारे में विचार बनाते ही रहते है - कि ये ठीक है, ये ठीक नहीं है, ऐसा करो, ऐसा मत करो, आदि इत्यादि।


अब एक सीक्रेट बताता हूं मैं आपको! पता है वो जो लिखा है, वैसा कब होता है? वैसी घटना हमारे जीवन में कब घटित होती है? अच्छा, किसी और के बारे में अब हम बात नही करेंगे, हम स्वयं के बारे में ही जानने की कोशिश करेंगे। क्यों कि किसी और इंसान के मन में क्या घटित हो रहा है वो तो हम खोज ही नही पाएंगे ना। मगर...! 


मगर ये घटना हमारे जीवन में, जब हमे किसी से बहुत ही गहरा इश्क हो जाए, मोहब्बत हो जाए, तब घटित होती है। कुछ समय के लिए ही सही, मगर हो जाती है, हो सकती है। जब हमे वो इंसान जैसा है, वैसा ही मन - विचार - काया से यथास्थिति पूर्णतया स्वीकार होता है। हम जिससे प्रेम करते है उसे फिर परखना भूल जाते है, ये स्थति सिर्फ बहुत ही गहरे इश्क होने के दौरान ही संभव है। जब हम सिर्फ इश्क करते है और इसके अलावा और कुछ भी नही।


अब लौटते है, इश्क और परमात्मा के संबंध के बारे में :

इश्क हमारे जीवन का पहला रहस्य है और परमात्मा आखरी। और इन दोनो ही रहस्यों को जिसने भी हमारी यादों में हमेशा के लिए जोड़ कर रखा है उन्हे हम सादर नमन करते है, उनके सामने हम अपना सर झुकाते है, और उनको याद करके या उनके सामने हम प्रार्थना करते है।

राधा जी और कृष्ण जी, सीता जी और राम जी, भोलेनाथ जी और मां पार्वती जी। भारत में तो और भी बहुत से उदाहरण है और पाश्चात्य संस्कृति में भी प्रेम और परमात्म के संदर्भ में बहुत कुछ है जानने के लिए। आगे बढ़ते है।


इश्क के बारे में लोगो ने व्यक्त करने के लिए अभिव्यक्ति की संभावनाओं को उनकी हदों तक परख लिया है, पूरे विश्व में, हर जगह, हर भाषा में। और शायद परमात्मा से भी ज्यादा। क्यूं कि ये जो पहला रहस्य है - प्रेम,  इससे जुड़ी हुई बाते हमें मनभावन भी लगती है और हम आसानी से उन्हे समझ भी सकते है और महसूस भी कर सकते है। मगर परमात्मा से जुड़ी हुई बाते तो अक्सर गहन अध्यन - चिंतन का विषय होती है, तो हर कोई न तो उन्हे जान पाता है और ना ही स्वानुभाव की सच्चाई से कह पाता है।


अब हम दोनो के बारे में एक साथ बात करते है।

इश्क; गहरे इश्क में जब हम किसी को पूर्ण रूप से स्वीकार कर लेते है, तब हमारा मन, हमारे विचार शून्य से हो जाते है, एक प्रकार की शून्यता को छू लेते है। हमारी सारी इच्छाएं, सारे सपने, हमारा अस्तित्व जैसे सम्पूर्ण लगने लगता है। और एक अद्भुत, अलौकिक शून्यता से हमारा मिलन होता है। कुछ पल, कुछ समय के लिए ही सही, मगर हो जाता है।


और यही वो शून्यता है जिसे उम्र भर के लिए पाने के वास्ते और जीवन की संपूर्णता को प्राप्त करने के लिए कोई पर्वतों की गुफाओं में, कोई घने जंगलों में, तो कोई किसी ना किसी एकांत की शरण लेता है। तो कोई स्वाध्याय करता है, कोई योग द्वारा, कोई कठिन तपस्या द्वारा, कोई तंत्र-मंत्र द्वारा, तो कोई भक्ति द्वारा - इसी शून्यता की खोज में निकल पड़ता है।


ये अद्भुत, दिव्य शून्यता परमात्मा के द्वार की कुंजी है। काम - क्रोध - मोह - माया से छुटकारे की अंतिम स्थिति है।


आपका दिन शुभ हो, शुभकामना।

गिरीश जैन



इस विषय पर लिखने को इतना कुछ है कि क्या ही कहूं मैं। विचारों का, बातों का, ज्ञान का समुंदर इतना गहरा है कि अगर किसी समय इच्छा शक्ति प्रबल हो जाए तो जरूर ही एक पूरी किताब लिखने की कोशिश होगी। तब तक, जो नही लिखा है और नही लिख पाया वो सब बातें आसमान में तैरते हुए बादलों के साथ बहती रहेंगी, बारिश हो तो भीग जाना।



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